1952 और 1957 के चुनाव में कांग्रेस को मिलता रहा वाक- ओवर

कांग्रेस पार्टी को 1951-52 के सीपी एंड बरार और 1956-57 के समय मध्यप्रदेश में चुनाव में वाक- ओवर मिलता था।

1952 और 1957 के चुनाव में कांग्रेस को मिलता रहा वाक- ओवर
  • रामराज्य परिषद, एसपी,पीएसपी और एसकेपी देती थीं कांग्रेस को टक्कर
  • बात जब मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव की है तो ये भी जानना जरूरी है

जबलपुर। 1951-52 के सीपी एंड बरार और 1956-57 के समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस पार्टी को चुनाव में वाक- ओवर मिलता था। यानी अन्य पार्टियां मुकाबले में बमुश्किल 1-2 प्रतिशत ही ठहर पाती थीं। यह वो समय था जब देश को मिली आजादी के बाद के कई वर्षों तक लोगों के मन में कांग्रेस के प्रति श्रद्धा व विश्वास हुआ करता था। 1951-52 और 1956-57 के विधानसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि विपक्ष शुरुआत से ही अपने पैर जमा चुका था। तब भी विपक्ष बंटा हुआ था,जिसका सीधा फायदा सत्ताधारी दल को मिलता रहा है।

पहले-दूसरे विधानसभा चुनाव में पार्टियों की स्थिति कैसी थी

अंग्रेजों के समय यानी आजाद भारत के पहले कई छोटे-छोटे प्रांत बनाए गए थे जिनमें मध्य प्रांत एवं विदर्भ को मिलाकर एक पृथक राज्य सेंट्रल प्राविंस एंड बरार सन् 1919 में बनाया गया था। इसमें वर्तमान मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ और महाकोशल(जबलपुर संभाग,दमोह,खंडवा ,कटनी, आदि कई जिले) क्षेत्र शामिल थे। राजधानी नागपुर थी। महाराष्ट्र का विदर्भ इलाका भी सम्मिलित था,जो बाद के समय में पहले बम्बई राज्य और अब महाराष्ट्र का हिस्सा बनाया गया। 1951-52 के पहले विधानसभा चुनाव में कुल 232 सीटों के लिए चुनाव कराए गए थे, जिसमें से कांग्रेस को 194,किसान मजदूर पार्टी को 8, रामराज्य परिषद को 3, सोशलिस्ट पार्टी को 2, एसके पक्ष को 2 और 23 निर्दलीय जीतकर आए थे। इसी प्रकार  सन् 1956 में बने नए मध्यप्रदेश के बाद कराए गए चुनाव के समय  विधानसभा की कुल 288  सीटों में से कांग्रेस को 232,जनसंघ को 10, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 12, सीपीआई को 2, हिंदू महासभा को 7, रामराज्य परिषद को 5 और निर्दलीयों को 50 सीटें हासिल हुई थीं।

जबलपुर जिले की किन पार्टियों में होती थी टक्कर

 1951-52 और 1956-57 के विधानसभा चुनावों के आंकड़ों पर गौर करने से पता चलता है कांग्रेस के मुकाबले कई पार्टियां मुकाबले में होती थीं। इनमें सोशलिस्ट पार्टी का वजूद कुछ अधिक रहा। जनसंघ भी तब उतना प्रभावी नहीं हो सका था। यह वो समय था जब जबलपुर और कटनी एक थे यानि जिले का विभाजन नहीं हुआ था। 1951-52 के चुनाव की बात करें तो जबलपुर जिले के 10 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ही जीती थी। तब वर्तमान जबलपुर शहर में 2 सीटें थीं जबलपुर-1 एवं जबलपुर-2 के नाम से । शेष सीटें क्रमशः पाटन, खमरिया,मझौली-पनागर,सिहोरा,स्लीमनाबाद, मुड़वारा (कटनी),रीठी और विजयराघवगढ़ हुआ करती थीं।

1956-57 में कराए गए नए मध्यप्रदेश के चुनाव के समय जबलपुर शहर तीन सीटों क्रमशः जबलपुर-1, जबलपुर-2 और जबलपुर-3 विधानसभा क्षेत्रों में बांट दिया गया। जबलपुर-1 सीट से कांग्रेस के कुंजीलाल दुबे ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सवाईमल जैन को हराया। जबलपुर-2 सीट से कांग्रेस के जगदीश नारायण अवस्थी ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के भवानी प्रसाद तिवारी को मात दी। इसी तरह जबलपुर-3 से कांग्रेस के जगमोहन दास (सेठ गोविंददास के पुत्र) ने सीपीआई के लक्ष्मीनारायण को परास्त किया था। उधर पनागर में तो कांग्रेस के परमानंद भाई पटेल के मुकाबले कोई भी प्रत्याशी मैदान में ही नहीं उतर सका।बरगी सीट से कांग्रेस के चंन्द्रिका प्रसाद त्रिपाठी,पाटन सीट से कांग्रेस के दो लोग एक साथ चुने गए। जिनमें एक जजा वर्ग का था। ये हैं नेकनारायण सिंह और देवा देवी। सिहोरा विधानसभा क्षेत्र से भी उस समय एक सीट से दो लोग चुने गए थे। जिनमें एक जनरल और दूसरा जजा वर्ग से था। यहां से कांग्रेस के काशीप्रसाद पाण्डेय ने जहां अपने प्रतिद्वंद्वी ऊसर सिंह को हराया तो राजा हरभगत सिंह ने केबीएल अग्निहोत्री को परास्त किया।हारने वाले प्रत्याशी पीएसपी के थे।